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|संग्रह=निशा निमन्त्रण / हरिवंशराय बच्चन
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क्षण भर को क्यों प्यार किया था
अर्द्ध रात्रि में सहसा उठकर,
पलक संपुटों में मदिरा भर
तुमने क्यों मेरे चरणों में अपना तन-मन वार दिया था?
क्षण भर को क्यों प्यार किया था?
अर्द्ध रात्रि में सहसा उठकर,<br>पलक संपुटों में मदिरा भर,<br>तुमने क्यों मेरे चरणों में अपना तन-मन वार दिया था?<br>क्षण भर को क्यों प्यार किया था?<br><br> ‘यह अधिकार कहाँ से लाया!?<br>और न कुछ मैं कहने पाया -<br>मेरे अधरों पर निज अधरों का तुमने रख भार दिया था!<br>क्षण भर को क्यों प्यार किया था?<br><br>
वह क्षण अमर हुआ जीवन में,<br>आज राग जो उठता मन में -<br>यह प्रतिध्वनि उसकी जो उर में तुमने भर उद्गार दिया था!<br>क्षण भर को क्यों प्यार किया था?<br><br/poem>
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