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जिलाधीश / आलोक धन्वा

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|रचनाकार = आलोक धन्वा
}}
{{KKCatKavita}}<poem>तुम एक पिछड़े हुए वक्ता हो <br><br>
तुम एक ऐसे विरोध की भाषा में बोलते हो<br> जैसे राजाओं का विरोध कर रहे हो <br> एक ऐसे समय की भाषा जब संसद का जन्म नहीं हुआ था <br><br>
तुम क्या सोचते हो <br> संसद ने विरोध की भाषा और सामग्री को वैसा ही रहने दिया है <br> जैसी वह राजाओं के ज़माने में थी <br><br>
यह जो आदमी <br> मेज़ की दूसरी ओर सुन रह है तुम्हें <br> कितने करीब और ध्यान से <br> यह राजा नहीं जिलाधीश है !<br><br>
यह जिलाधीश है <br> जो राजाओं से आम तौर पर <br> बहुत ज़्यादा शिक्षित है <br> राजाओं से ज़्यादा तत्पर और संलग्न !<br><br>
यह दूर किसी किले में - ऐश्वर्य की निर्जनता में नहीं <br> हमारी गलियों में पैदा हुआ एक लड़का है <br> यह हमारी असफलताओं और गलतियों के बीच पला है <br> यह जानता है हमारे साहस और लालच को <br> राजाओं से बहुत ज़्यादा धैर्य और चिन्ता है इसके पास <br><br>
यह ज़्यादा भ्रम पैदा कर सकता है <br> यह ज़्यादा अच्छी तरह हमे आजादी से दूर रख सकता है <br> कड़ी <br> कड़ी निगरानी चाहिए <br> सरकार के इस बेहतरीन दिमाग पर !<br><br>
कभी-कभी तो इससे सीखना भी पड़ सकता है !
</poem>
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