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{{KKRachna
|रचनाकार=अहमद फ़राज़
|संग्रह=दर्द आशोब / फ़राज़
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जो भी दुख याद न था याद आया आज क्या जानिए क्या याद आया। आया
ऐ रफ़ीक़ो<ref>मित्रो</ref>! सरे-मंज़िल जाकरक्या कोई आबला-पा<ref>जिसके पाँवों में छाले पड़े हुए हों</ref>याद आया याद आया था बिछड़ना तेराफिर नहीं याद कि क्या याद आया जब कोई ज़ख़्म भरा दाग़ बनाजब कोई भूल गया याद आया ये मोहब्बत मुहब्बत भी है क्या रोग ‘फ़राज़’ जिसको भूले वो सदा याद आया।आया
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