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|संग्रह=
}}
[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>फ़िराक़-ए-यार ने बेचैन मुझको रात भर रक्खाकभी तकया इधर रक्खा, कभी तकया उधर रक्खा
बराबर आईने के भी न समझे क़द्र वो दिल की इसे ज़ेरफ़िराक़-ए-क़दम यार<ref>प्रेमी/प्रेमिका के विछोह्</ref>ने बेचैन मुझको रात भर रक्खा उसे पेश-ए-नज़र कभी तकिया<ref>सिरहाना</ref>इधर रक्खा, कभी तकिया उधर रक्खा
तुम्हारे संग-ए-दर का एक टुकड़ा बराबर<ref>समक्ष</ref>आईने के भी जो हाथ आयान समझे क़द्र<ref>महत्व</ref>वो दिल की अज़ीज़ ऐसा किया कि मर कर इसे ज़ेरे-क़दम<ref>पाँव तले</ref>रक्खा उसे छाती पे धर पेशे-नज़र<ref>आँख के सामने</ref>रक्खा
जिनाँ में साथ अपने क्यों न ले जाऊँ मैं नासेह को तुम्हारे संगे-दर<ref>दरवाज़े का पत्थर</ref>का एक टुकड़ा भी जो हाथ आयासुलूक अज़ीज़<ref>प्रिय</ref>ऐसा ही मेरे साथ है हज़रत ने किया मर कर उसे छाती पे धर रक्खा
बड़ा एहसाँ है मेरे सर पे उसकी लग़ज़िश-ए-पा का जिनाँ में साथ अपने क्यों न ले जाऊँ मैं नासेह<ref>उपदेशक</ref>कोकि उसने बेतहाशा हाथ सुलूक<ref>व्यवहार</ref>ऐसा ही मेरे दोश पर साथ है हज़रत<ref>महाशय</ref>ने कर रक्खा
बड़ा एहसाँ है मेरे सर पे उसकी लग़ज़िश-ए-पा<ref>पैरों की लड़खड़ाहट</ref>का कि उसने बेतहाशा हाथ मेरे दोश<ref>काँधे</ref>पर रक्खा तेरे हर नक़्श-ए-पा <ref>पद-चिह्न</ref>को रेहगुज़र रहगुज़र<ref>रास्ता</ref> में सजदा कर बैठे
जहाँ तूने क़दम रक्खा वहाँ हमने भी सर रक्खा
अमीर अच्छा शगून-ए-मय किया साक़ी की फ़ुरक़त <ref>विछोह</ref>में जो बरसा अब्र-ए-रेहमत रहमत<ref>मेहरबानी का बादल</ref>जा-ए-मय <ref>शराब की जगह</ref>शीशे <ref>जाम</ref>में भर रक्खा
</poem>