भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक तुम हो / माखनलाल चतुर्वेदी

9 bytes added, 12:23, 12 दिसम्बर 2009
{{KKCatKavita}}
<poem>
गगन पर दो सितारे: एक तुम हो,
धरा पर दो चरण हैं: एक तुम हो,
‘त्रिवेणी’ दो नदी हैं! एक तुम हो,
::रहे साक्षी लहरता सिंधु मेरा,
::कि भारत हो धरा का बिंदु मेरा ।
 
::कला के जोड़-सी जग-गुत्थियाँ ये,
::हृदय के होड़-सी दृढ वृत्तियाँ ये,
::तिरंगे की तरंगों पर चढ़ाते,
::कि शत-शत ज्वार तेरे पास आते ।
 
::तुझे सौगंध है घनश्याम की आ,
::तुझे सौगंध है भारत-धाम की आ,
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits