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क्या हुआ हुस्न हमसफ़र है या नहीं
इश्क मंज़िल ही मंज़िल है रस्ता नहीं
गम ग़म छुपाने से छुप जाए ऐसा नहीं
बेख़बर तूने आईना देखा नहीं
आज समझा के मैं तुझको भूला नहीं
अहलअहले-ऐ-मंजिल मंज़िल अभी से न मुझ पर हँसो
पाँव टूटे हैं दिल मेरा टूटा नहीं
तरक-ऐतर्के-मय को अभी दिन ही कितने हुए और कुछ कहा मय को जाहिद ज़ाहिद तो अच्छा नहीं
छोड़ भी दे अब मेरा साथ ऐ ज़िन्दगी
मुझ को नदामत है तुझ से नदामत मुझे तुझसे शिकवा नहीं
तूने तौबा तो कर ली मगर ऐ 'ख़ुमार'
तुझ को तुझको रहमत पर शायद भरोसा नहीं  
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