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क्या हुआ हुस्न हमसफ़र है या नहीं
इश्क मंज़िल ही मंज़िल है रस्ता नहीं
बेख़बर तूने आईना देखा नहीं
आज समझा के मैं तुझको भूला नहीं
पाँव टूटे हैं दिल मेरा टूटा नहीं
छोड़ भी दे अब मेरा साथ ऐ ज़िन्दगी
तूने तौबा तो कर ली मगर ऐ 'ख़ुमार'
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