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|संग्रह= विहान / महेन्द्र भटनागर
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विश्व के उस पार की, कवि कौन है जो आज गाता ?
टिक सकीं बातें अरे क्या खोखलीं जो सब तरफ़ से
आज कण-कण ढह चुका है, कौन जो उसको उठाता ?
 '''रचनाकाल: 1944</poem>
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