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घर जब बना लिया है तेरे दर पर कहे बग़ैर <br>
जानेगा अब भी तू भी अब न मेरा घर कहे बग़ैर <br><br>
कहते हैं, जब रही न मुझे ताक़त-ए-सुख़न <br>
जानूँ जानूं किसी के दिल कि की मैं क्यूँ कर क्यूँकर कहे बग़ैर <br><br>
काम उस से आ पड़ा है कि जिसका जहान में <br>
लेवे ना कोई नाम सितमगर कहे बग़ैर <br><br>
जी में ही कुछ नहीं है हमारे वरना वगरना हम <br>
सर जाये या रहे न रहें पर कहे बग़ैर <br><br>
चलता नहीं है, दश्ना-ओ-ख़ंजर कहे बग़ैर <br><br>
हर चन्द हो मुशाहिदामुशाहिद-ए-हक़ की गुफ़्तगू <br>
बनती नहीं है बादा-ओ-साग़र कहे बग़ैर <br><br>