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भए अति निठुर / घनानंद

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|रचनाकार=घनानंद
}}
[[Category:कवित्त]]{{KKCatKavitt}} ::::'''कवित्त'''<br><brpoem>भए अति निठुर, मिटाय पहचानि डारी,<br>::याही दुख में हमैं जक लागी हाय हाय है।<br>तुम तो निपट निरदई, गई भूलि सुधि,<br>::हमैं सूल सेलनि सो क्योहूँन भुलाय है।<br>मीठे मीठे बोल बोलि ठगी पहिलें तौ तब,<br>::अब जिय जारत कहौ धौ कौन न्याय है।<br>सुनी है कै नाहीं, यह प्रगट कहावति जू,<br>::काहू कलपायहै सु कैसे कल पायहै॥<br/poem>