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वहै मुसक्यानि / घनानंद

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|रचनाकार=घनानंद
}}
[[Category:कवित्त]]{{KKCatKavitt}} ::::'''कवित्त'''<br><brpoem>वहै मुसक्यानि, वहै मृदु बतरानि, वहै<br>::लड़कीली बानि आनि उर मैं अरति है।<br>वहै गति लैन औ बजावनि ललित बैन,<br>::वहै हँसि दैन, हियरा तें न टरति है।<br>वहै चतुराई सों चिताई चाहिबे की छबि,<br>::वहै छैलताई न छिनक बिसरति है।<br>आनँदनिधान प्रानप्रीतम सुजानजू की,<br>::सुधि सब भाँतिन सों बेसुधि करति है।। 4 ।।है।<br/poem>