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Kavita Kosh से
:वत्स, देखो तुम निहार-निहोर।
:हाँ, जिसे वे गहन-कण्टक-शूल,
:बन गये गॄहवाटिका गृहवाटिका के फूल!
:और देखो उस अनुज की ओर,
:आह! वह लाक्ष्मण्य कैसा घोर!