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छूट गईं नबज़ें उम्मीदें देने वाली हैं जवाब<br />
अब उधर से नामाबर लेके पयाम आया तो क्या आया
 
आज ही मिलना था ए दिल हसरत-ए-दिलदार में<br />
तू मेरी नाकामीयों के बाद काम आया तो क्या आया
 
 
काश अपनी ज़िन्दगी में हम ये मंज़र देखते<br />
अब सर-ए-तुर्बत कोई महशर-खिराम आया तो क्या आया
[तुर्बत = tomb; महशर = day of judgement; खिराम = चलने का तरीका]
 
 
सांस उखड़ी आस टूटी छा गया जब रंग-ए-यास<br />
नामबार लाया तो क्या ख़त मेरे नाम आया तो क्या
 
 
मिल गया वो ख़ाक में जिस दिल में था अरमान-ए-दीद <br />
अब कोई खुर्शीद-वश बाला-इ-बाम आया तो क्या आया
[खुर्शीद-वश = महबूब]
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