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ग़ज़ल
जब इरादा करके हम निकले हैं मंज़िल की तरफ़
ख़ुद ही तूफ़ाँ ले गया कश्ती को साहिल की तरफ़
फ़ैसला मक़तूल के हक़ में नहीं होगा कभी
ये वक़ालत वक़ालत और मुंसिफ़, सब हैं क़ातिल की तरफ़
है अँधेरी कोठरी मे नूर की खिड़की 'ख़याल'