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बकवास करो / रवीन्द्र दास

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|रचनाकार=रवीन्द्र दास
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<poem>
बकवास करो
 
हर बार करो - गर बिकता है।
 
हंसो, हंसो, तुम और हंसो
 
यदि इससे भी कुछ बनता है।
 
यह पैसा है वह जरिया, जिससे सब कुछ
 
कुछ भी मिल सकता है
 
लेकिन यह पैसा पाने को कुछ करतब करने होते हैं।
 
कविता न करो
 
कविता न पढो - बेहतर है कुछ चमचागिरी
 यह सरल कार्य , पर लाभ बहुत  
बकवास बुद्धि से करना है
 
खुश करना है अधिकारी को - हर काम का अपना नुस्खा है
 
कोई हंस के करे
 
कोई रो के करे
 
कोई कोई बस सो के करे
 
जिसको जिस तरह सुहाता है
 
वह अपनी राग सुनाता है
 
है लक्ष्य जीत उन सबका ही
 
तुम भी इसका अभ्यास करो
 
यदि बनता है कोई भी मतलब तो तुम भी प्रिय बकवास करो
 
कुछ पैसे बन ही जाएँगे
 
इसका मुझपर विश्वास करो
 
बकवास करो, बकवास करो
 बेबात हंसो ,  
बकवास करो ।
</poem>