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दस्त-ऐ-ज़मील-ऐ-तरबखेज <ref>खुशियाँ देने वाले कोमल हाथ</ref> मेरी माँ के थे
उन हरेक पल वो साथ जो मेरे इम्तहाँ के थे
हरेक सिम्त <ref>दिशा</ref> समेत दी कि हो जाऊँ कामराँ<ref>सफल</ref>
वगरना कल तक सब कहाँ के हम कहाँ के थे
अहल-ऐ-जहाँ <ref>दुनियावाले</ref>ओ ये पेंच-ओ-ख़म <ref>दाँव-पेंच</ref> का दममुझे गिराने वाले सब मेरे ही कारवाँ <ref>जुलूस</ref> के थे
जब तक वो न थी करीब,तो सब थे रकीब
हम तब तक उम्मीदवार खुर-ऐ-गलताँ <ref>डूबता सूरज</ref> के थे
आज तो दे रखीं हैं सौ दुकाने किराए पर
कल तक खरीदार खुद हम अपनी दुकाँ के थे
 
 
दस्त-ऐ-ज़मील-ऐ-तरब्खेज़--खुशियाँदेने वाले कोमल हाँथ
सिम्त--दिशा
अहल-ऐ-जहां--दुनियावाले
कामरां--सफल
पेंच-ओ-ख़म--दाओ-पेंच
कारवां--जुलूस
खुर-ऐ-गलताँ--डूबता सूरज
</poem>
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