भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
<poem>
देखो
हमारी भावनाएँ भावनाएं
अब
भावनाएँ भावनाएं नहीं रहीं
ये बन गयी हैं
बिफरा नाग
घातक ही होगा
तुम्हारे लिए !
 __ बहुत सहे हैं
आघात पर आघात
किन्तु
ये गांधीवादी राह
विफल हो गयी लगती है !!
 हम इन्तजार __हम इन्तेजार ही करते रह गये
कि कभी तुम्हें भी
हमारी भूख का एहसास हो,
हमारी खुशियों में
तुम भी वाह करो !!!
 अब __अब ख़त्म हो चुकी हैं इन्तजार इन्तेजार की घड़ियाँ
आर-पार का संघर्ष है ये ,
हमारे __हमारे हाथों में
तलवार ही
शायद तुम्हें पसंद हो !
 पहले ___पहले बता दिया होता
हम शान्तिपसंद /
प्रेम के पुजारी
लहू बहाना भी जानते हैं .
</poem>