भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
''' इतना कुछ होता है यहां '''
इतना कुछ होता है यहां
जबकि कोई हुक्मरान
डिनर कर रहा होता है
व्हाइट हाउस में
तब, क्या होता है यहां?
न, न, कूड़ेदान में दुबका
यह आदम जीव
लोग पेट भरते हैं अघा-अघा
गली-गली मचलती सुन्दरता से
और तंगहाली के दिन लड़ गए हैं,
यहां, कोई नहीं है
बनाएंगे इस कुरूप राष्ट्र को
गन्धर्वदेश और अप्स रा लोक
धत!
कितना है बकवास
कायांतरित होता जा रहा है यह
करिश्माई ख़्वाब-गाह में तत्त्वर
हां, अब तो कर लो यकीन
किदूरदर्शन के गर्म तवे पर सिंक-सिंक करहर दुधमुंहा बनकर रहेगा वीर्यवान,उससे रिसते मूसलाधार रज से बच्च्चियाँ नहीं रह पाएंगी बच्चियां,हां, मान लो, बेशक!दीवारें भी होती जा रही हैं गर्भवती,अब इस जादुई पिटारे मेंपैदा होते हैं अथाह अनाजबेघरों को मिलते हैं मकानखुलते हैं कल-कारखाने,रोजीरोटी की दूकान जिनसे कृतार्थ हो रहे हैं बेरोज़गार,सच मानो! इस कामधेनु से मुहैया होती हैं बिना मांगे चिकनी-चुपड़ी चीज़ें एकदम घर बैठे कह दो नि:संकोच!कि न किया करे जनता जयघोषजब सीमापार से प्रेमीजन आते हैं उन्हें चखाने स्वादिष्ट आर डी एक्सक्योंकि हम सरमायादारी कर रहे हैंशिखर-शान्ति सम्मेलनों में  ये काहिल-कुंजेहन कश्मीरी क्या समझेंगे हमारी निरपवाद वैश्विक वर्चस्वता?हमने लाशों पर खेलते हुए सियासी कबड्डी असंख्य बार फूंकी है पंचशील की दुन्दुभी,कारगिल को कई बार फिल्माने आयोजित किया है जाने-अनजानेशोख शाही शेखचिल्लियों के वास्ते  अब जान भी लो कि राष्ट्र हो रहा है महिमामंडित,क्योंकि दलेर मेंहदी के कामोत्तेजक वहशियाने छिपक-छिपक धुन पर उड़ते महायानों में सरपट सवारपेरिस,लन्दन, न्यूयार्क में उतर हमारे प्रवासी विशिष्टजन चुग रहे होते हैं राजहरमों में माणिक-मोती सम्भोगावस्था में ऐसे में मत करो बातें वाहियात टपकते बीजों से पनपते गुमनाम पौधों की,जिन्हें एहसास है तो बसभूख और प्यास की,जो मीलों रेल पटरियों परव्यस्त फिरते हैंलुढ़क-लुढ़क बटोरते हुए प्लास्टिक-पोलीथीन खाली बोतलें, ढेरों यात्रा छीजन जिनके बिक सकने पर शायद, उन्हें हो नसीब प्लेटफार्म की चाय-रोटीकई दिनों बादसिर्फ आज जबकि दूरदर्शन पर 'वन्दे मातरम' गा-गाकर एक मुहिम छिड़ चुकी हैआगे बढ़ने की,बातें मत करो(आंकड़ों-उद्घोषणाओं के युग में) भूखों-नंगों की जो शरणार्थी बन चख रहे हैं जायकेदार नागरिक जीवनमीलों अंधी रेल-सुरंगों में हां, इतना कुछ होता है यहांआओ, देखो, भालो, अमल करोकनाट प्लेस में सरेआमकैट-वाक् और डेटिंग करते मिलेंगे हजारों-हजारों आचरण-संहिताकार,बालीवुड-हालीवुड से अक्षुण प्रेरणा लेइंटरनेट पर अमृतपान करये सोदाहरण बता रहे हैंजीने की जीवंत शैलियांजिन्हें बामशक्कत सीखा है इन्होंने दूरदर्शन पर प्रसारित अन्त्याक्षारियों से.