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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=शास्त्री नित्यगोपाल कटारे}}{{KKCatKavita‎}}<poem> '''१'''अपमानित सर्वदा क: देवता? पति देवता।'''२''' पत्नी समक्षे अहर्निशं पतति कथ्यत् पति:।'''३''' ददाति सदा आचरेण रोटिका: सदाचारिणी।'''४''' अरुचिपूर्ण: केवल सुदर्शन: स्वरुचि भोज:।'''५''' या निज पति व्रत कारयति-सा पतिव्रतास्ति।  
'''संस्कृत से हिंदी में अनुवाद स्वयं कवि के द्वारा''' '''१''' अपमानित सदा कौन देवता? पति देवता।'''२''' पत्नी सामने बार-बार पतित होता है पति।'''३''' खिलाती सदा अचार से रोटियाँ सदाचारिणी।'''४''' अरुचिपूर्ण देखने में सुंदर स्वरुचि भोज।'''५''' पति को रोज़ व्रत कराती वह पतिव्रता है।</poem>
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