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बेगुनाहों के{{KKGlobal}}इस लहू में{{KKRachnaधर्म -ईमान सब|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'खो गया,}}यहाँ न जाने{{KKCatKavita}}कौन बहेलिया<poem>मौत का चारा</poem>बो गया ।{{KKGlobal}}चीख-कराहें{{KKRachnaलथपथ धरती|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'उड़ती है}}बारूदी गन्ध,{{KKCatKavita}}कायरता वाली<poem>करतूतेंकितना अच्छा होता !निश-दिन लिखतीकितना अच्छा होता !जो तुम आँसूयूँ बरसों पहले मिल जाते सच मानो इस मन के पतझर-छन्द।मासूमों कामें फूल हज़ारों खिल जाते नन्हा बचपन खुशबू से भर जाता आँगन ।छिपते सूरज-साकुछ अपना दुख हम कह लेतेकुछ ताप तुम्हारे सह लेतेकुछ तो आँसू पी लेते हम कुछ में हम दो पल बह लेते हल्का हो गया जाता अपना मन हथियारों तुमने चीन्हें मन केआखरसौदागर भीतुमने समझे पीड़ा के स्वरअमन तुम हो मन के नारेमीत हमारेलगा रहे ।पहने मुखौटेमानवता रिश्तों केधागों से ऊपरभस्मासुर कोजगा रहे।बेबसी की इसक़त्लग़ाह मेंमानव ही कहींसो गया। तुम हो गंगा -जैसी पावन ।
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