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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=रामस्वरूप किसान |संग्रह=}}{{KKCatKavita‎}}<poemPoem>आ बैठ बात करां
एक दूजै नै देखां
कित्ता नेड़ै-नेड़ै रैया आपां
पण देख नीं सक्या
एक दूजै नै।नै ।
झूठ नीं बोलूं
म्हैं तो नीं देख सक्यो
थारी थूं जाणै।जाणै ।
बरत्यो अवस है
ठोडी रो तिल
जकै रौ रंग
म्हारी अणदेखी रै अंधारै रळग्यो।रळग्यो ।
माफ करज्यो
औसाण ही नीं मिल्यो
अै दांत कद टूटग्या थारा?अर अै धोळा बाळ?
आ बैठ, गौर सूं देखूं थनै
कदे भाजो-भाज में
आ जिनगाणी भाज नीं जावै।
</poem>
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