भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ख़ुद्दार और सनकी / पीयूष दईया" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पीयूष दईया |संग्रह= }} <Poem> चाणक्य मित्र की सिखावन ...)
 
 
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
 
उछल-उछल  
 
उछल-उछल  
 
टप्पे-टप्पे होती गेंद को
 
टप्पे-टप्पे होती गेंद को
लोक लेता हर बार
+
रोक लेता हर बार
 
डाल आता फिर  
 
डाल आता फिर  
 
अन्यों के पाले में  
 
अन्यों के पाले में  

23:04, 10 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण

चाणक्य मित्र की सिखावन रहती

गेंद अपने पाले में रखनी चाहिए
हमेशा
सुनता वह कवि गर्वीला
ख़ुद्दार मूर्ख का सनकी चेला
उछल-उछल
टप्पे-टप्पे होती गेंद को
रोक लेता हर बार
डाल आता फिर
अन्यों के पाले में

रहता
यूँ ख़ुश-ख़ुश सनकी चेला
और हँसता वह
ख़ुद्दार मूर्ख

नेपथ्य से