"ईश्वरी सत्ता पर शोध पत्र/ प्रदीप मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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| पैदा हुआ हिन्दू जाति में | पैदा हुआ हिन्दू जाति में | ||
| हिन्दुओं में भी ब्राह्मण | हिन्दुओं में भी ब्राह्मण | ||
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| सर्वशक्तिमान है ईश्वर | सर्वशक्तिमान है ईश्वर | ||
| − | ईश्वर की ईच्छा के  | + | ईश्वर की ईच्छा के विरुद्ध | 
| कुछ भी संभव नहीं है | कुछ भी संभव नहीं है | ||
| ईश्वर ने ही बनाया है | ईश्वर ने ही बनाया है | ||
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| विद्यालय जाने के लिए | विद्यालय जाने के लिए | ||
| घर के बाहर | घर के बाहर | ||
| − | जब रखा पहली बार  | + | जब रखा पहली बार क़दम | 
| सबसे पहले मंदिर ले जाया गया | सबसे पहले मंदिर ले जाया गया | ||
| मंदिर में ईश्वर के क्लोन नें | मंदिर में ईश्वर के क्लोन नें | ||
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| अतः ककहरा सीखते ही | अतः ककहरा सीखते ही | ||
| धर्मग्रन्थों को पढ़ना मेरी नैतिक विवशता थी और | धर्मग्रन्थों को पढ़ना मेरी नैतिक विवशता थी और | ||
| − | उनको कण्ठस्थ करना  | + | उनको कण्ठस्थ करना आनुवांशिक परम्परा | 
| − | धर्म के इसी घटाटोप में हर  | + | धर्म के इसी घटाटोप में हर रोज़ | 
| − | + | नए-नए ईश्वरों ने मेरे दिमाग़ और दिल में   | |
| जगह बनाना शुरू कर दिया | जगह बनाना शुरू कर दिया | ||
| इस तरह से किशोरावस्था तक | इस तरह से किशोरावस्था तक | ||
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| तैंतिस करोड़ देवी-देवताओं का वास हो गया | तैंतिस करोड़ देवी-देवताओं का वास हो गया | ||
| − | इतनी विशाल ईश्वरी सत्ता की  | + | इतनी विशाल ईश्वरी सत्ता की चकाचौंध में हतप्रभ मैं | 
| आस्था के बिल्लौरी काँच पर हाथ घुमाते-घुमाते | आस्था के बिल्लौरी काँच पर हाथ घुमाते-घुमाते | ||
| निकम्मा होता जा रहा था | निकम्मा होता जा रहा था | ||
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| गीता से लेकर हनुमान चालिसा तक | गीता से लेकर हनुमान चालिसा तक | ||
| − | संकट मोचक थे मेरे पास | + | संकट-मोचक थे मेरे पास | 
| तंत्र और सिद्धियों के तमाम चमत्कार | तंत्र और सिद्धियों के तमाम चमत्कार | ||
| मेरी आँखों के पलकों पर चिपके हुए थे | मेरी आँखों के पलकों पर चिपके हुए थे | ||
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| एक नागरिक की हैसियत से | एक नागरिक की हैसियत से | ||
| − | जब  | + | जब दाख़िल हुआ इस समाज में   | 
| देखा लोग भूखों मर रहे थे | देखा लोग भूखों मर रहे थे | ||
| ईश्वर टनों घी से स्नान कर रहे थे | ईश्वर टनों घी से स्नान कर रहे थे | ||
| − | लाखों लोगों  | + | लाखों लोगों का कत्ल हो रहा था | 
| ईश्वर अपने अंकवारी पकड़कर बैठे हुए थे जन्मभूमि | ईश्वर अपने अंकवारी पकड़कर बैठे हुए थे जन्मभूमि | ||
| − | + | हज़ारों द्रौपदियाँ, लाखों सुग्रीव और विभीषन गुहार लगा रहा थे | |
| ईश्वर चैन की वंशी बजा रहे थे | ईश्वर चैन की वंशी बजा रहे थे | ||
| छप्पन भोग लगा रहे थे | छप्पन भोग लगा रहे थे | ||
| मगन थे देवदासियों के नृत्य में | मगन थे देवदासियों के नृत्य में | ||
| − | मैं  | + | मैं इन्तज़ार कर रहा था कि | 
| अभी आसमान से उतरेंगे मुस्कराते हुए | अभी आसमान से उतरेंगे मुस्कराते हुए | ||
| − | और अपनी हथेली में समेट ले  | + | और अपनी हथेली में समेट ले जाएँगे दुःखों के पहाड़ | 
| − | कभी भी किसी  | + | कभी भी किसी वक़्त प्रकट हो जाएगा सुदर्शन-चक्र और   | 
| सारे अत्याचारियों के सिर धड़ से अलग कर देगा | सारे अत्याचारियों के सिर धड़ से अलग कर देगा | ||
| − | करोड़ों-करोड़ बाण सनसनाते हुए  | + | करोड़ों-करोड़ बाण सनसनाते हुए आएँगे और   | 
| − | नष्ट कर  | + | नष्ट कर जाएँगे सारे विध्वंसक हथियार | 
| − | + | इन्तज़ार करते-करते मैं थक गया हूँ | |
| अब बहुत कम दिन बचे हैं मेरी उम्र के | अब बहुत कम दिन बचे हैं मेरी उम्र के | ||
| इस दुनिया से बाहर होने से पूर्व | इस दुनिया से बाहर होने से पूर्व | ||
| ईश्वरी पहेली सुलझाने की गरज से | ईश्वरी पहेली सुलझाने की गरज से | ||
| एक बार फिर पलट रहा हूँ | एक बार फिर पलट रहा हूँ | ||
| − | सारे  | + | सारे धर्मग्रन्थों और इतिहास के पन्ने और | 
| − | अपने गुणसुत्रों की  | + | अपने गुणसुत्रों की आनुवांशिक प्रवृत्तियों पर | 
| शोध कर रहा हूँ | शोध कर रहा हूँ | ||
| − | इतिहास की  | + | इतिहास की दराज़ से निकाल रहा हूँ | 
| लम्बे-लम्बे जुमले | लम्बे-लम्बे जुमले | ||
| अनन्त तक फैली संस्कृतियों और | अनन्त तक फैली संस्कृतियों और | ||
| − | पाताललोक तक जड़  | + | पाताललोक तक जड़ फैलाई परम्पराएँ | 
| समय की सतह पर सरकते हुए | समय की सतह पर सरकते हुए | ||
| मैं जिस मुकाम पर पहुँचा हूँ | मैं जिस मुकाम पर पहुँचा हूँ | ||
| − | यह एक  | + | यह एक गुफ़ा है | 
| जिसमे अंधकार ही अंधकार है और   | जिसमे अंधकार ही अंधकार है और   | ||
| इसकी दीवारों पर | इसकी दीवारों पर | ||
| − | ब्रेल लिपि में लिखा हुआ है इतिहास | + | ब्रेल-लिपि में लिखा हुआ है इतिहास | 
| − | ब्रेल लिपि में लिखे हुए   | + | ब्रेल-लिपि में लिखे हुए   | 
| − | इस इतिहास को पढ़ने की क्षमता हासिल  | + | इस इतिहास को पढ़ने की क्षमता हासिल की और   | 
| − | मर  | + | मर गईं उंगलियों की पोरों की कोशिकाएँ | 
| − | + | आख़िरी कोशिका के मरने से ठीक एक क्षण पहले तक | |
| − | मैंने पढ़ा जब जंगल और  | + | मैंने पढ़ा जब जंगल और गुफ़ाओं से पहली बार निकले मनुष्य | 
| बहुत सारे मनुष्य | बहुत सारे मनुष्य | ||
| − | लग गए इस दुनिया को सजाने- | + | लग गए इस दुनिया को सजाने-सँवारने में | 
| कुछ लोग जो नहीं कर सकते थे यह काम | कुछ लोग जो नहीं कर सकते थे यह काम | ||
| वे ईश्वर की रचना में लग गए | वे ईश्वर की रचना में लग गए | ||
| पंक्ति 109: | पंक्ति 113: | ||
| सबसे पहला वर्ण ब्राह्मणों का | सबसे पहला वर्ण ब्राह्मणों का | ||
| − | ब्राह्मण ईश्वर के सबसे  | + | ब्राह्मण ईश्वर के सबसे क़रीबी | 
| ईश्वरी संरचना के सारे सूत्र इनके पास | ईश्वरी संरचना के सारे सूत्र इनके पास | ||
| पंक्ति 115: | पंक्ति 119: | ||
| यही इनकी रोजी-रोटी का जुगाड़ | यही इनकी रोजी-रोटी का जुगाड़ | ||
| अतः ईश्वर की सबसे पहली अवधारणा | अतः ईश्वर की सबसे पहली अवधारणा | ||
| − | ब्राह्मणों ने  | + | ब्राह्मणों ने दी | 
| क्षत्रिय धरती पर ईश्वर के पूरक | क्षत्रिय धरती पर ईश्वर के पूरक | ||
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| तीसरा वर्ण वैश्यों का | तीसरा वर्ण वैश्यों का | ||
| वैश्य ठहरे पूँजीपति-व्यापारी | वैश्य ठहरे पूँजीपति-व्यापारी | ||
| − | इन्होंने सबसे  | + | इन्होंने सबसे ज़्यादा ईश्वर का ही व्यापार किया | 
| अतः ईश्वरीय सत्ता समृद्ध और व्यापक हुई | अतः ईश्वरीय सत्ता समृद्ध और व्यापक हुई | ||
| अंतिम वर्ण शुद्रों का | अंतिम वर्ण शुद्रों का | ||
| − | जो जनसंख्या में बाकी वर्णो के योग से कई गुना  | + | जो जनसंख्या में बाकी वर्णो के योग से कई गुना ज़्यादा | 
| − | शुरू से लगे हुए थे इस दुनिया को सजाने- | + | शुरू से लगे हुए थे इस दुनिया को सजाने-सँवारने में | 
| − | इन्होंने ही बनाया दुनिया को इतना  | + | इन्होंने ही बनाया दुनिया को इतना ...... और सुन्दर   | 
| ईश्वरीय सत्ता में | ईश्वरीय सत्ता में | ||
| ये ही रहे सबसे ज्यादा दलित-दमित | ये ही रहे सबसे ज्यादा दलित-दमित | ||
| इस शोधपत्र के निष्कर्ष पर | इस शोधपत्र के निष्कर्ष पर | ||
| − | मेरी लम्बी-चौड़ी  | + | मेरी लम्बी-चौड़ी आनुवांशिक समझ | 
| − | सिकुड़कर लिजलिजी हो  | + | सिकुड़कर लिजलिजी हो गई है | 
| − | इतिहास के दलदल में नाक तक  | + | इतिहास के दलदल में नाक तक धँस गया हूँ और   | 
| हवा में लहराते हुए मेरे बाल | हवा में लहराते हुए मेरे बाल | ||
| सूरज में उलझ गए हैं | सूरज में उलझ गए हैं | ||
| पंक्ति 149: | पंक्ति 153: | ||
| कबूतर बन जाऊँ | कबूतर बन जाऊँ | ||
| मंदिर की मुंडेर पर बैठकर | मंदिर की मुंडेर पर बैठकर | ||
| − | + | गुटरगूँ-गुटरगूँ करूँ ।    | |
| − | + | ||
| </poem> | </poem> | ||
21:51, 13 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण
पैदा हुआ हिन्दू जाति में
हिन्दुओं में भी ब्राह्मण
ब्राह्मण था 
इसलिए मेरी आस्था में सबसे पहले
ईश्वर को स्थापित किया गया
सर्वशक्तिमान है ईश्वर
ईश्वर की ईच्छा के विरुद्ध
कुछ भी संभव नहीं है
ईश्वर ने ही बनाया है
नदियाँ-पेड़-पहाड़-धरती-खेत-जीव-जन्तु
इन ईश्वरी मुहावरों मैं                                                                                                                             
दिमाग तक डुबोकर रखा गया मुझे
विद्यालय जाने के लिए
घर के बाहर
जब रखा पहली बार क़दम
सबसे पहले मंदिर ले जाया गया
मंदिर में ईश्वर के क्लोन नें
चढ़ावे के अनुपात में आशीर्वाद दिया
इसी आशीर्वाद से
मैं सीख पाया ककहरा
अतः ककहरा सीखते ही
धर्मग्रन्थों को पढ़ना मेरी नैतिक विवशता थी और
उनको कण्ठस्थ करना आनुवांशिक परम्परा
धर्म के इसी घटाटोप में हर रोज़
नए-नए ईश्वरों ने मेरे दिमाग़ और दिल में 
जगह बनाना शुरू कर दिया
इस तरह से किशोरावस्था तक
मेरी चेतना में
तैंतिस करोड़ देवी-देवताओं का वास हो गया
इतनी विशाल ईश्वरी सत्ता की चकाचौंध में हतप्रभ मैं
आस्था के बिल्लौरी काँच पर हाथ घुमाते-घुमाते
निकम्मा होता जा रहा था
ईश्वर की कठपुतली होने का आभास
मन में इस तरह से घर कर गया था कि
मेरे शरीर की सारी कोशिकाओं के जीवद्रव्य
धीरे-धीरे ईश्वर के अधीन हो रहे थे
गीता से लेकर हनुमान चालिसा तक
संकट-मोचक थे मेरे पास
तंत्र और सिद्धियों के तमाम चमत्कार
मेरी आँखों के पलकों पर चिपके हुए थे
सिर पर ईश्वर के क्लोनों के वरदहस्त थे
मंदिरों की कतारें बिछीं हुयीं थीं गली-गली
फिर भी ब्रह्मांड के हाशिए पर दुबका मैं
अपने संशयो में सबसे ज्यादा असुरक्षित था
बढ़ रही थी मेरी उम्र
घट रही थी सोचने-समझने की क्षमता
एक नागरिक की हैसियत से
जब दाख़िल हुआ इस समाज में 
देखा लोग भूखों मर रहे थे
ईश्वर टनों घी से स्नान कर रहे थे
लाखों लोगों का कत्ल हो रहा था
ईश्वर अपने अंकवारी पकड़कर बैठे हुए थे जन्मभूमि
हज़ारों द्रौपदियाँ, लाखों सुग्रीव और विभीषन गुहार लगा रहा थे
ईश्वर चैन की वंशी बजा रहे थे
छप्पन भोग लगा रहे थे
मगन थे देवदासियों के नृत्य में
मैं इन्तज़ार कर रहा था कि
अभी आसमान से उतरेंगे मुस्कराते हुए
और अपनी हथेली में समेट ले जाएँगे दुःखों के पहाड़
कभी भी किसी वक़्त प्रकट हो जाएगा सुदर्शन-चक्र और 
सारे अत्याचारियों के सिर धड़ से अलग कर देगा
करोड़ों-करोड़ बाण सनसनाते हुए आएँगे और 
नष्ट कर जाएँगे सारे विध्वंसक हथियार
इन्तज़ार करते-करते मैं थक गया हूँ
अब बहुत कम दिन बचे हैं मेरी उम्र के
इस दुनिया से बाहर होने से पूर्व
ईश्वरी पहेली सुलझाने की गरज से
एक बार फिर पलट रहा हूँ
सारे धर्मग्रन्थों और इतिहास के पन्ने और
अपने गुणसुत्रों की आनुवांशिक प्रवृत्तियों पर
शोध कर रहा हूँ
इतिहास की दराज़ से निकाल रहा हूँ
लम्बे-लम्बे जुमले
अनन्त तक फैली संस्कृतियों और
पाताललोक तक जड़ फैलाई परम्पराएँ
समय की सतह पर सरकते हुए
मैं जिस मुकाम पर पहुँचा हूँ
यह एक गुफ़ा है
जिसमे अंधकार ही अंधकार है और 
इसकी दीवारों पर
ब्रेल-लिपि में लिखा हुआ है इतिहास
ब्रेल-लिपि में लिखे हुए 
इस इतिहास को पढ़ने की क्षमता हासिल की और 
मर गईं उंगलियों की पोरों की कोशिकाएँ
आख़िरी कोशिका के मरने से ठीक एक क्षण पहले तक
मैंने पढ़ा जब जंगल और गुफ़ाओं से पहली बार निकले मनुष्य
बहुत सारे मनुष्य
लग गए इस दुनिया को सजाने-सँवारने में
कुछ लोग जो नहीं कर सकते थे यह काम
वे ईश्वर की रचना में लग गए
ईश्वर की रचना में ही
बने चार वर्ण
सबसे पहला वर्ण ब्राह्मणों का
ब्राह्मण ईश्वर के सबसे क़रीबी
ईश्वरी संरचना के सारे सूत्र इनके पास
ईश्वरीय ज्ञान के गुरू
यही इनकी रोजी-रोटी का जुगाड़
अतः ईश्वर की सबसे पहली अवधारणा
ब्राह्मणों ने दी
क्षत्रिय धरती पर ईश्वर के पूरक
राजा-महाराजा, अन्नदाता
इन्होंने बनवाए बड़े-बड़े मंदिर
किए भव्य धार्मिक अनुष्ठान
जितनी बढ़ी महिमा ईश्वर की
उतना ही फले-फूले क्षत्रिय
अतः ईश्वरीय सत्ता के संस्थापक
तीसरा वर्ण वैश्यों का
वैश्य ठहरे पूँजीपति-व्यापारी
इन्होंने सबसे ज़्यादा ईश्वर का ही व्यापार किया
अतः ईश्वरीय सत्ता समृद्ध और व्यापक हुई
अंतिम वर्ण शुद्रों का
जो जनसंख्या में बाकी वर्णो के योग से कई गुना ज़्यादा
शुरू से लगे हुए थे इस दुनिया को सजाने-सँवारने में
इन्होंने ही बनाया दुनिया को इतना ...... और सुन्दर 
ईश्वरीय सत्ता में
ये ही रहे सबसे ज्यादा दलित-दमित
इस शोधपत्र के निष्कर्ष पर
मेरी लम्बी-चौड़ी आनुवांशिक समझ
सिकुड़कर लिजलिजी हो गई है
इतिहास के दलदल में नाक तक धँस गया हूँ और 
हवा में लहराते हुए मेरे बाल
सूरज में उलझ गए हैं
अब मैं चाहता हूँ कि
ईश्वर के भार से चपटा हुए शरीर को छोड़कर
कबूतर बन जाऊँ
मंदिर की मुंडेर पर बैठकर
गुटरगूँ-गुटरगूँ करूँ ।
 
	
	

