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"नहीं बने शब्द कोश / प्रदीप मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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किसी पिंड में
 
किसी पिंड में
सृजन की ऊष्मा इतनी तीव्रता से उफने कि  
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सृजन की ऊष्मा इतनी तीव्रता से उफ़ने कि  
 
फूटकर बिखर जाय वह पूरे अंतरिक्ष में
 
फूटकर बिखर जाय वह पूरे अंतरिक्ष में
 
जिस तरह से किसान बिखेरता खेतों में बीज
 
जिस तरह से किसान बिखेरता खेतों में बीज
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उपग्रहों के चक्कर काटें ग्रह
 
उपग्रहों के चक्कर काटें ग्रह
 
ग्रहों का सूर्य
 
ग्रहों का सूर्य
हिमालय पिघलकर समुन्द्र बन जाय
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हिमालय पिघलकर समुद्र बन जाय
और समुन्द्र हराभरा पहाड़  
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और समुद्र हराभरा पहाड़  
  
 
पेड़-पौधे मनुष्यों की तरह चलें फिरें
 
पेड़-पौधे मनुष्यों की तरह चलें फिरें
चिड़ियाँ समुन्द्र में तैरें
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चिड़ियाँ समुद्र में तैरें
 
मछलियाँ ले उड़ें मछुए की जाल  
 
मछलियाँ ले उड़ें मछुए की जाल  
 
मनुष्यों का स्मृतिलोप हो जाय
 
मनुष्यों का स्मृतिलोप हो जाय
 
इतिहास डूब जाय प्रलय की बाढ़ में
 
इतिहास डूब जाय प्रलय की बाढ़ में
  
फिर नए सिरे से पहचाने जाएं
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फिर नए सिरे से पहचाने जाएँ
 
जंगल-पेड़-पहाड़-जीव-जंतु
 
जंगल-पेड़-पहाड़-जीव-जंतु
 
निर्मित हो नई-नई भाषा
 
निर्मित हो नई-नई भाषा

22:43, 13 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण

किसी पिंड में
सृजन की ऊष्मा इतनी तीव्रता से उफ़ने कि
फूटकर बिखर जाय वह पूरे अंतरिक्ष में
जिस तरह से किसान बिखेरता खेतों में बीज

उगें छोटे-बड़े ग्रह-उपग्रह
निर्मित हो नया-नया ब्रह्मांड

इस बार
उपग्रहों के चक्कर काटें ग्रह
ग्रहों का सूर्य
हिमालय पिघलकर समुद्र बन जाय
और समुद्र हराभरा पहाड़

पेड़-पौधे मनुष्यों की तरह चलें फिरें
चिड़ियाँ समुद्र में तैरें
मछलियाँ ले उड़ें मछुए की जाल
मनुष्यों का स्मृतिलोप हो जाय
इतिहास डूब जाय प्रलय की बाढ़ में

फिर नए सिरे से पहचाने जाएँ
जंगल-पेड़-पहाड़-जीव-जंतु
निर्मित हो नई-नई भाषा
नए-नए शब्द आएँ जीवन में
और कभी नहीं बनें शब्दकोश ।