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"कमाल / नवनीत पाण्डे" के अवतरणों में अंतर

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नहीं दिखाई देती धरती
 
नहीं दिखाई देती धरती

04:08, 17 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण

धरती में
नहीं दिखाई देती धरती
आकाष में
गुम है आकाष
प्रकाष में
नहीं है प्रकाष
पानी में
नहीं बचा पानी
आग में
कहां बची है आग
फिर भी हम
छेड़े हैं राग
मिलाते हैं ताल
है ना कमाल!