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"क़िताब / अरुण चन्द्र रॉय" के अवतरणों में अंतर
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11:43, 23 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण
1.
क्या
तुमने भी
महसूस किया है
इन दिनों
ख़ूबसूरत होने लगे हैं
क़िताबो की जिल्द
और
पन्ने पड़े हैं
खाली
2.
क्या
तुम्हे भी
दीखता है
इन दिनों
क़िताबों पर पड़ी
धूल का रंग
हो गया है
कुछ ज़्यादा ही
काला
और
कहते हैं सब
आसमान है साफ़
3.
क्या
तुम्हे भी
क़िताबो के पन्नों की महक
लग रही है कुछ
बारूदी-सी
और उठाए नहीं
हमने हथियार
बहुत दिनों से
4..
क्या
तुमने पाया है कि
क़िताब के बीच
रखा है
एक सूखा गुलाब
जबकि
ताज़ी है
उसकी महक
अब भी
हम दोनों के भीतर