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"भीतर की लड़की / पूरन मुद्गल" के अवतरणों में अंतर

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21:42, 27 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण

उसका नाम कुछ भी हो सकता था
और / मैं हो सकता था
परिचय से प्रेम तक की यात्रा का हमसफ़र
क्योंकि / वह चाहे कोई भी हो
मैंने उसके भीतर बैठी लड़की को
पहचान लिया

जब तुम
किसी भीतर की लड़की को
पहचान लेते हो
तो फिर / जानने को
शेष कुछ भी नहीं रहता

सिवाय इसके
कि तुम्हारी कल्पना में उभरे
वर्षा में धरती से स्वयं फूट पड़ी
दूधिया खुंभी
या
अंगड़ाई लेती विमुग्धा नायिका
या
नबोकव की लोलिता ।