भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इक सुबह / मनविंदर भिम्बर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनविंदर भिम्बर |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> इक सुबह मेरे …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
05:00, 29 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण
इक सुबह
मेरे आँगन में आ गया
इक बादल का टुकड़ा
छूने पर वो हाथ से फिसल रहा था
मैंने उसे बिछाना चाहा
ओढ़ना चाहा
पर
जुगत नहीं बैठी
फिर
बादल को न जाने क्या सूझी
छा गया मुझ पर
मैं अडोल सी रह गई
और समा गई बादल के टुकड़े में
पता नहीं
किस टुकड़े को ओढ़ा
और कौन सा बिछ गया
मैं सिर से पाँव तक
नहा गई
ये रहमत थी
या उसने उलाहना उतारा