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"ये लफ्ज़ आईने हैं मत इन्हें उछाल के चल/ कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर

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ये लफ्ज़ आईने हैं मत इन्हें उछाल के चल
 
ये लफ्ज़ आईने हैं मत इन्हें उछाल के चल
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अदब की राह मिली है तो देखभाल के चल
 
अदब की राह मिली है तो देखभाल के चल
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कहे जो तुझसे उसे सुन, अमल भी कर उस पर
 
कहे जो तुझसे उसे सुन, अमल भी कर उस पर
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ग़ज़ल की बात है उसको न ऐसे टाल के चल
 
ग़ज़ल की बात है उसको न ऐसे टाल के चल
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सभी के काम में आएंगे वक्त पड़ने पर
 
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तू अपने सारे तजुर्बे ग़ज़ल में ढाल के चल
 
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मिली है ज़िन्दगी तुझको इसी ही मकसद से
 
मिली है ज़िन्दगी तुझको इसी ही मकसद से
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संभाल खुद को भी औरों को भी संभाल के चल
 
संभाल खुद को भी औरों को भी संभाल के चल
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कि उसके दर पे बिना मांगे सब ही मिलता है
 
कि उसके दर पे बिना मांगे सब ही मिलता है
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चला है रब कि तरफ तो बिना सवाल के चल
 
चला है रब कि तरफ तो बिना सवाल के चल
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अगर ये पांव में होते तो चल भी सकता था
 
अगर ये पांव में होते तो चल भी सकता था
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ये शूल दिल में चुभे हैं इन्हें निकाल के चल
 
ये शूल दिल में चुभे हैं इन्हें निकाल के चल
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तुझे भी चाह उजाले कि है, मुझे भी 'कुंअर'
 
तुझे भी चाह उजाले कि है, मुझे भी 'कुंअर'
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बुझे चिराग कहीं हों तो उनको बाल के चल
 
बुझे चिराग कहीं हों तो उनको बाल के चल

10:31, 29 दिसम्बर 2010 का अवतरण

ये लफ्ज़ आईने हैं मत इन्हें उछाल के चल

अदब की राह मिली है तो देखभाल के चल


कहे जो तुझसे उसे सुन, अमल भी कर उस पर

ग़ज़ल की बात है उसको न ऐसे टाल के चल


सभी के काम में आएंगे वक्त पड़ने पर

तू अपने सारे तजुर्बे ग़ज़ल में ढाल के चल


मिली है ज़िन्दगी तुझको इसी ही मकसद से

संभाल खुद को भी औरों को भी संभाल के चल


कि उसके दर पे बिना मांगे सब ही मिलता है

चला है रब कि तरफ तो बिना सवाल के चल


अगर ये पांव में होते तो चल भी सकता था

ये शूल दिल में चुभे हैं इन्हें निकाल के चल


तुझे भी चाह उजाले कि है, मुझे भी 'कुंअर'

बुझे चिराग कहीं हों तो उनको बाल के चल