भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हैं हम सभी क़ैदी / राजा होलकुंदे" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजा होलकुंदे |संग्रह= }} <Poem> सड़क-सड़क पर सभी ओर क…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:42, 29 दिसम्बर 2010 का अवतरण
सड़क-सड़क पर सभी ओर
कैसे खचाखच भर आए हैं
मनुष्यों के गुलमोहर !
पक्षियों के कोलाहल से
गदगदा गया है आकाश
एक दूसरे के कंधों पर
विश्वास से सुस्ताने !
किसी को कुछ कर्ज़ देना हो तो
क्या दे सकता हूँ
कवि रूप में ।
कोमल स्याही से
काग़ज़ पर लिखे कुछ शब्द
अथवा तारों की व्यापक उदासीनता !
हैं हम सभी क़ैदी
एक विराट कारागृह में
केवल समय काटने वाले ।
उसके लिए कुछ तो नष्ट करने वाले,
कुछ नए का निर्माण करने वाले
जैसे कोई नवोढ़ा
काढ़ती रहती है कसीदा
कपड़े पर
केवल समय गूँथने के लिए
मूल मराठी से सूर्यनारायण रणसुभे द्वारा अनूदित