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"जब कभी देखो / मोहन सपरा" के अवतरणों में अंतर

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22:25, 2 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

1.
जब कभी देखो
आसमान से गिरते
पक्षी को
तो समझ लो
किसी गिद्ध ने आँख खोली है
उसे पकड़ो !

2.
जब कभी देखो
वृक्ष के पीले पड़ रहे
पत्तों को
तो हाथ उठाओ
और जंगल को ललकारो !

3.
जब कभी देखो -
नदी का जल
रुक-रुक कर चले
तो उठो
और नदी में कूद जाओ ।

4.
जब कभी देखो -
धरती की मिट्टी तक तड़पे
तो साँसों को
छत बनने दो ।

5.
जब कभी देखो-
धूप के बदलते रंग को
तो ढूँढ़ो
पूरे देश में
कौन सूरज की तरफ़ देख रहा है