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"प्रश्नानुभूति / मोहन सपरा" के अवतरणों में अंतर
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22:29, 2 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
1.
हम कहाँ
किधर जाएँ
अंधेरे का
कफ़न हटाएँ
रोशनी का
ताज पहनाएँ ।
2.
पत्थर मन से
कैसे उगेगा
कोमल गुलाब
अरे विराट !
3.
मेरे आसपास
सब कुछ है -
फूल, हरे पत्ते, चिड़िया
बिल्ली ....
पत्नी, बच्चे, मित्रा, सम्बन्धी
फिर भी
यह अंधकार
किधर से
निसृत हो रहा है
मुझे बार-बार
उचका रहा है ।
4.
बहारें
किधर से आई हैं
किधर को जाएँगी
किसे क्या पता है
फिर ;
यह उत्पात क्यों ?
5.
मैं
लक्ष्य-पहाड़ के लिए हूँ
समर्पित
फिर अंधेरा क्या ?
उजाला क्या ?