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बात चली बस्ती में
त्यौहारों की ।
चहल-पहल गलियों में
रोशनी बढ़ी
बँसवट की बाँह थाम
बेल फिर चढ़ी
चर्चा में ख़ुशबू है
कचनारों की ।
पोर-पोर महक उठी
अमराई की
आहट फिर साथ हुईं
परछाईं की
भाषाएँ आँखों की
मनुहारों की ।