"खेल-सियासत / हृदयेश" के अवतरणों में अंतर
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02:08, 3 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
यह कैसी शतरंज बिछी है,
जिसपर खड़े पियादे-से हम
खेल-खेल में पिट जाते हैं,
कितने सीधे-सादे-से हम ।
बिना मोल मोहरे बनें हम
खड़े हुए हैं यहाँ भीड़ में
ऐसी क्या है मज़बूरी जो
बँधे प्राण राजा-वजीर में
फलक-विहीन किसी तुक्के-सा चलते हैं,
जिस-तिस के हाथों
राजा के हाथी-घोड़ों से कुछ थोड़े,
कुछ ज़्यादे-से हम ।
हम कैसे सर्कस के बौने
डग-डग में दुनिया नापें
सबके आगे चलते जाएँ
उठते-गिरते कभी न काँपे
अपना सब कुछ लगा दाँव पर
राजा की शह-मात बचाएँ
खेल-सियासत की हर बाज़ी
अपने कंधों लादे-से हम ।
यहाँ खेल के कुछ उसूल हैं
बने हुए कुछ चौखट-ख़ाने
हुक्म हमें हैं चढ़े दाँव पर
मर-कट जाएँ इसी बहाने
कौन खिलाड़ी, कौन अनाड़ी,
हमको इससे मतलब ही क्या
राजा की मायानगरी में
झूठे कसमें-वादे-से हम ।