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03:00, 3 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

मैं स्तालिनग्राद कोई रक्षा के गीत नहीं गाता
न रेगिस्तान में लड़े गए युद्ध के
न सिसली में फ़ौजों के जा उतरने के
न आइज़नहावर द्वारा राइन नदी को पार करने के ही.

मैं गीत गाता हूँ एक लड़की को जीत लेने के ।

जोयेरिया मोरलौक के क़ीमती नगीनों से नहीं
न ड्रेफ़स के इत्रों से
न प्लास्टिक के ख़ोल में रखे गुलाबों से ही
न कैडिलैक मोटरकार से
बल्कि महज़ अपनी कविताओं से जीत लिया मैंने उसे ।

और वह मुझ ग़रीब को चाहती है
सोमोज़ा के लाखों की बनिस्बत