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"नदी की देह / शांति सुमन" के अवतरणों में अंतर

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02:58, 4 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

दुख रही है अब नदी की देह
बादल लौट आ
छू लिए हैं पाँय संझा के
सीपियों ने खोल अपने पंख
होंठ तक पहुँचे हुए अनुबंध के
सौंप डाले कई उजले शंख
हो गया है इंतज़ार विदेह
बादल लौट आ

बह चली हैं बैंजनी नदियाँ
खोलकर कत्थई हवा के पाल
लिखे गेरू से नयन के गीत
छपे कोंपल पर सुरभि के हाल
खेल के पतले हुए हैं रेह
बादल लौट आ

फूलते पीले पलासों में
काँपते हैं ख़ुशबुओं के चाव
रुकी धारों में कई दिन से
हौसले से काग़ज़ों की नाव
उग रहा है मौसमी संदेह
बादल लौट आ