भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गीतों का होना / गुलाब सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब सिंह |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <poem> गीत न होंगे क…)
 
(कोई अंतर नहीं)

03:45, 4 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

      गीत न होंगे
      क्या गाओगे ?

हँस-हँस रोते
रो-रो गाते
आँसू-हँसी
राग-ध्वनि-रंजित
हर पल को
संगीत बनाते
लय-विहीन
हो गए अगर
      तो कैसे फिर
      सम पर आओगे ।

तन में कण्ठ
कण्ठ में स्वर है
स्वर शब्दों की
तरल धार ले
देह नदी
हर साँस लहर है
धारा को अनुकूल
किए बिन
      दिशाहीन
      बहते जाओगे ।

स्वर अनुभावन
भाव विभावन
ऋतु वैभव
विन्यास पाठ विधि
रचनाओं के
फागुन-सावन
मुक्त-प्रबंध
काव्य कौशल से
      धवल नवल
      रचते जाओगे ।