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"तेज धूप में / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर

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हैं इस हिन्दुस्तान में ।
  
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उतरे खलिहान में।<br><br>
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जीना भी है मरना भी है
हँसी न छूटी गीत न छूटा<br>
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मुझको पार उतरना भी है
सदा रहा<br>
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यही सोचता रहा
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बराबर
बिरहा और मचान में।<br><br>
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बैठा कन्यादान में ।
 
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जीना भी है मरना भी है<br>
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मुझको पार उतरना भी है<br>
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यही सोचता रहा<br>
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बराबर<br>
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बैठा कन्यादान में।
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12:08, 4 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

तेज़ धूप में
नंगे पाँव
वह भी रेगिस्तान में,
मेरे जैसे जाने कितने
हैं इस हिन्दुस्तान में ।

जोता-बोया-सींचा-पाला
बड़े जतन से देखा भाला
कटी फ़सल तो
साथ महाजन भी
उतरे खलिहान में ।

जाने क्या-क्या टूटा-फूटा
हँसी न छूटी गीत न छूटा
सदा रह
तिरसठ का नाता
बिरहा और मचान में ।

जीना भी है मरना भी है
मुझको पार उतरना भी है
यही सोचता रहा
बराबर
बैठा कन्यादान में ।