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"बरसों बाद मिला है कोई / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर

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और हँसाऊँ मैं।<br><br>
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क्या बतलाऊँ मैं ।
  
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मन में झलक रही<br>
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घिरा हुआ हूँ<br>
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क्या बतलाऊँ मैं।<br><br>
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क्या-क्या गाऊँ मैं ।
 
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ऐसे घेरे रहे,<br>
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मन से टेर रहे,<br>
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क्या-क्या फूँकूँ<br>
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एक सांस में<br>
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क्या-क्या गाऊँ मैं।
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12:26, 4 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

बरसों बाद मिला है कोई
कहाँ छिपाऊँ मैं,
केवल उसे निहारूँ या
फिर-फिर बतियाऊँ मैं ।

तनिक न बदला वही हूँ बहू
पहले जैसा है
बतियाने का लहज़ा भी
जैसा का तैसा है
सोच रहा
हँसते चेहरे को
और हँसाऊँ मैं ।

थोड़ी सी कुछ टूटन-जैसी
मन में झलक रही
बरसी नहीं घटा कजरारी
क्यारी नहीं बही
असमंजस में
घिरा हुआ हूँ
क्या बतलाऊँ मैं ।

बीते दिन भी इस मौक़े पर
ऐसे घेरे रहे,
फेर रहे हैं हाथ प्राण पर
मन से टेर रहे,
क्या-क्या फूँकूँ
एक साँस में
क्या-क्या गाऊँ मैं ।