भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"काँटा हुई तुलसी / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) छो ("काँटा हुई तुलसी / कैलाश गौतम" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:59, 4 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
लहलहाते खेत जैसे दिन हमारे
थार कच्चा खा गए ।
सूखकर काँटा हुई तुलसी
हमारी आस्था
धर्म सिर का बोझ, साहस
रास्ते से भागता
शाप जैसे भोगते
संकल्प मृग हम तृण धरे पथरा गए ।।
पर्व जैसे देह के जेवर
उतरते जा रहे
संस्कारों की बनावट आज
कीड़े खा रहे
गुनगुनाते आइने थे
वक़्त के हाथों गिरे चिहरा गए ।।
ना-नुकुर हीला-हवाली और
अस्फुट ग़ालियाँ
भाइयों की हरक़तें हैं
झनझनाती थालियाँ
एक अनुभव साढ़े-साती
रत्न जैसे दोस्त भी कतरा गए ।।