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"कुछ और मुक्तक / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: <poem> कांटो के बीच रह कर, खुश हैं गुलाब हैं हम टेढे सवाल का …)
 
 
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कांटो के  बीच  रह  कर,  खुश हैं  गुलाब  हैं हम
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|रचनाकार=कुमार अनिल
टेढे   सवाल  का  भी  सीधा  जवाब हैं    हम
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<Poem>
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1.           
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काँटो के  बीच  रह  कर,  ख़ुश हैं  गुलाब  हैं हम
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टेढ़े   सवाल  का  भी  सीधा  जवाब हैं    हम
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न तो हमको पढ़ना मुश्किल, न हमें समझना मुश्किल
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पूरी  तरह  से  यारो,  खुली  इक  क़िताब हैं हम
  
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2.
 
मुश्किल  बहुत  है  माना, आसान बनके देखें
 
मुश्किल  बहुत  है  माना, आसान बनके देखें
हम इस  नये समय  की पहचान बनके देखें
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हम इस  नए समय  की पहचान बनके देखें
 
हिंदू, मुसलमां  यारो बन  लेंगे फिर कभी हम
 
हिंदू, मुसलमां  यारो बन  लेंगे फिर कभी हम
आओ कि  इस घडी बस  इन्सान बनके देखें  
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आओ कि  इस घड़ी बस  इन्सान बनके देखें  
  
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3.
 
सुलगा  रहा  जो  हमको  ठंडा  वो ताप कर दें
 
सुलगा  रहा  जो  हमको  ठंडा  वो ताप कर दें
दिल में जमे कलुष को हिलमिल के साफ कर दें
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दिल में जमे कलुष को हिलमिल के साफ़ कर दें
कि  ये वक्त है खुशी का, अवसर है दोस्ती का
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कि  ये वक़्त है ख़ुशी का, अवसर है दोस्ती का
इक  दूसरे  को  आओ, हम  दोनों माफ कर दें
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इक  दूसरे  को  आओ, हम  दोनों माफ़ कर दें
  
शिकवे शिकायतें सब,  आओ  कि भूल जायें
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4.
इन अन्धी बस्तियों  में  दीपक  नये जलायें
+
शिकवे शिकायतें सब,  आओ  कि भूल जाएँ
ये दूरियां दिलों  की, मिट जायेंगी स्वयं ही
+
इन अन्धी बस्तियों  में  दीपक  नए जलाएँ
कुछ तुम  करीब आओ, कुछ हम करीब आयें
+
ये दूरियाँ दिलों  की, मिट जाएँगी स्वयं ही
 +
कुछ तुम  क़रीब आओ, कुछ हम क़रीब आएँ
  
 +
5.
 
गीतों की  वादियों  में  आओ टहल के देखें
 
गीतों की  वादियों  में  आओ टहल के देखें
इन  खूनी मंजरों के  चेहरे बदल के  देखें
+
इन  ख़ूनी मंज़रों के  चेहरे बदल के  देखें
ये नफरतों के घेरे खुद ही मिटेंगे इक दिन
+
ये नफ़रतों के घेरे ख़ुद ही मिटेंगे इक दिन
 
इस प्यार की डगर पे कुछ दूर चल के देखें
 
इस प्यार की डगर पे कुछ दूर चल के देखें
  
टूटे  हुए  हृदय  की  झंकार बॉंटता हूं
+
6.
सब फूल  बॉंटते हैं, मैं खार बॉंटता हूं
+
टूटे  हुए  हृदय  की  झंकार बाँटता हूँ
ये गर्मिये मुहब्बत मिट जाये न दिलों से
+
सब फूल  बाँटते हैं, मैं ख़ार बाँटता हूँ
यारो  इसी  लिये मैं  अंगार  बॉंटता हूं
+
ये गर्मी-ए- मुहब्बत मिट जाए न दिलों से
 +
यारो  इसी  लिए मैं  अंगार  बाँटता हूँ
  
कुछ  अंधेरे उठे  रोशनी  खा गये
+
7.
चन्द झूठे शगल मन को बहला गये
+
कुछ  अँधेरे उठे  रोशनी  खा गए
गीत गुमसुम हुए, है रूआंसी ग.ज.ल
+
चन्द झूठे शगल मन को बहला गए
काव्य  के  मंच पर चुटकुले छा गये
+
गीत गुमसुम हुए, है रूआँसी ग़ज़ल
 +
काव्य  के  मंच पर चुटकुले छा गए
  
मेरी  राहों  में कांटे बिछा दीजिये
+
8.
मेरी दुश्वारियों  को  बढा दीजिये
+
मेरी  राहों  में काँटे बिछा दीजिए
गर इसी से शहर बच सके दोस्तो
+
मेरी दुश्वारियों  को  बढ़ा दीजिए
तो खुशी से मेरा घर जला दीजिये
+
ग़र इसी से शहर बच सके, दोस्तो
 +
तो ख़ुशी से मेरा घर जला दीजिए
  
भूली बिसरी सी  इक  कहानी हू
+
9.
बहती  ऑंखों का  खारा  पानी हू
+
भूली - बिसरी - सी  इक  कहानी हूँ
 +
बहती  आँखों का  खारा  पानी हूँ
 
तुम मुझे दिल में छिपा कर रख लो
 
तुम मुझे दिल में छिपा कर रख लो
गुजरे लम्हों  की  इक निशानी हू
+
गुज़रे लम्हों  की  इक निशानी हूँ
 
</poem>
 
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20:20, 4 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

1.
काँटो के बीच रह कर, ख़ुश हैं गुलाब हैं हम
टेढ़े सवाल का भी सीधा जवाब हैं हम
न तो हमको पढ़ना मुश्किल, न हमें समझना मुश्किल
पूरी तरह से यारो, खुली इक क़िताब हैं हम

2.
मुश्किल बहुत है माना, आसान बनके देखें
हम इस नए समय की पहचान बनके देखें
हिंदू, मुसलमां यारो बन लेंगे फिर कभी हम
आओ कि इस घड़ी बस इन्सान बनके देखें

3.
सुलगा रहा जो हमको ठंडा वो ताप कर दें
दिल में जमे कलुष को हिलमिल के साफ़ कर दें
कि ये वक़्त है ख़ुशी का, अवसर है दोस्ती का
इक दूसरे को आओ, हम दोनों माफ़ कर दें

4.
शिकवे शिकायतें सब, आओ कि भूल जाएँ
इन अन्धी बस्तियों में दीपक नए जलाएँ
ये दूरियाँ दिलों की, मिट जाएँगी स्वयं ही
कुछ तुम क़रीब आओ, कुछ हम क़रीब आएँ

5.
गीतों की वादियों में आओ टहल के देखें
इन ख़ूनी मंज़रों के चेहरे बदल के देखें
ये नफ़रतों के घेरे ख़ुद ही मिटेंगे इक दिन
इस प्यार की डगर पे कुछ दूर चल के देखें

6.
टूटे हुए हृदय की झंकार बाँटता हूँ
सब फूल बाँटते हैं, मैं ख़ार बाँटता हूँ
ये गर्मी-ए- मुहब्बत मिट जाए न दिलों से
यारो इसी लिए मैं अंगार बाँटता हूँ

7.
कुछ अँधेरे उठे रोशनी खा गए
चन्द झूठे शगल मन को बहला गए
गीत गुमसुम हुए, है रूआँसी ग़ज़ल
काव्य के मंच पर चुटकुले छा गए

8.
मेरी राहों में काँटे बिछा दीजिए
मेरी दुश्वारियों को बढ़ा दीजिए
ग़र इसी से शहर बच सके, दोस्तो
तो ख़ुशी से मेरा घर जला दीजिए

9.
भूली - बिसरी - सी इक कहानी हूँ
बहती आँखों का खारा पानी हूँ
तुम मुझे दिल में छिपा कर रख लो
गुज़रे लम्हों की इक निशानी हूँ