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तुम दफ़ना आए थे उन्हें
पहाड़ों के पार
गहरी क़ब्रों के भीतर
लेकिन वहाँ हरी-हरी घास उग आई है
भीतर की नन्हीं-नन्हीं जीवित धुकधुकियाँ
भूरी जड़ों की उँगलियाँ पकड़ कर
बाहर फूट रही हैं
आज नहीं तो कल यहाँ फूल खिलेंगे
उड़ेगी सुगंध चारों ओर दिगंत में ।