भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मनचला पेड़ / जे० स्वामीनाथन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जे० स्वामीनाथन |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> बीज चलते रहत…)
(कोई अंतर नहीं)

21:37, 6 जनवरी 2011 का अवतरण

बीज चलते रहते हैं हवा के साथ
जहाँ गिरते हैं थम जाते हैं ढीठ
बिरक्स बन जाते हैं
और टिके रहते हैं कमबख़्त
बगलों की तरह, या कि जोगी हैं महाराज
आज तो आकाश निम्मल है
पर पार साल
पानी ऐसा बरसा कि पूछो मत
हम पहाड़ के मानुस भी सहम गए

एक रात
ढाक गिरा और उसके साथ
हमारा पंद्रह साल बूढ़ा रायल का पेड़
जड़ समेत उखड़ कर चला आया
धार की ऊँचाई से धान की क्यार तक
(अब जहाँ खड़ा था वहाँ मुझे तकलीफ़ थी
यार बोरड़ खा गए थे बेवकूफ़)
सेटिंग ठीक न होने पर दस पेटी देता था, दस
मैं तो सिर पीट कर रह गया मगर
लंबरदारिन ने नगाड़े पर दी चोट पर चोट
इकट्ठा हो गया सारा गाँव
गड्ढा खोदा, रात भर लगे रहे पानी में
और खड़ा किया मनचले को नए मुक़ाम पर
अचरज है, ससुरा इस साल फिर फल से लदा है