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15:14, 9 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
अँधेरे में
घुसते चले जाते हैं कथाकार
सुरंग का सत्य पकड़ने के लिए
पीछे छोड़कर
जीते जागते जूझते इंसान
रचनाकाल: २५-११-१९६८