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17:25, 9 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
फूल
हो गई हँसी
रात के सितारों की
दिन हुए
पेड़
और
पेड़ खिलखिलाए हैं
काल
और काम की
डसी
जिंदगी जागी,
हर्ष
और
हास के
हर्म्य
महमहाए हैं
नाश की
निशा गई,
नींद का नशा टूटा,
जागरण के
पंथ
पंथी
तमतमाए हैं
रचनाकाल: ०२-०४-१९७०