भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एकजुट / अशोक भाटिया" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक भाटिया |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> आकाश में नहीं है …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:37, 11 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
आकाश में
नहीं है कोई लकीर
सारे तारे मिलकर देते हैं
रोशनी और सौंदर्य और कल्पना
सबके लिए
प्रकृति में
नहीं है कोई लकीर
कितने पेड़ जनती है पृथ्वी
और वे सब रचते हैं
हरियाली और छाया और फल
सबके लिए
सूर्य के लिए
नहीं है कोई बंधन
वह कितनी ऊर्जा की सुइयाँ
चुभोता है अलसाई ज़मीन को
और जनता है जीवन
सबके लिए
बादल नहीं मानते
प्रांत या दिशा का बंधन
वे जब बहते हैं
तो बरसते हैं सब ओर सुदूर
उर्वरा करते हुए ज़मीन को
सबके लिए
हम भी देश और दुनिया को
पेड़ और सूर्य
आकाश और बादल की तरह
सींच सकते हैं ।