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"ज़िंदगी की कविता / अशोक भाटिया" के अवतरणों में अंतर

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21:50, 11 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

कविता
हर कहीं है
जीवन की लय में
थिरकती कविता की पदचाप
सुन सको तो सुनो

खुरपी की लय से
मिट्टी गोड़ता माली
भरता है पौधे में संगीत
तो झूमते हैं फूल

किसान की लय पर
उसके हल–बैल
भरते हैं ज़मीन में उमंग
तो झूमती हैं बालियाँ

कामगार के हाथों से होकर
कविता
ढलती है पुर्जों में
अनवरत संगीत की लय पर
कविता
घरैतिन के हाथों से होकर
तवे पर पहुँचती है
तो बनती है रोटी
कविता
बच्चे की किलकारी की तरह
हर कहीं है
नदी की उच्छल तरंगों में
चिड़िया के पंखों में
कविता है
तभी एक उड़ान है

जहाँ कहीं भी कविता है
वहाँ जीवन का
ज़िंदा इतिहास रचा जा रहा है....