भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"झूठ के पाँव / अभय मौर्य" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अभय मौर्य |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> कहते हैं झूठ के पां…)
(कोई अंतर नहीं)

00:02, 13 जनवरी 2011 का अवतरण

कहते हैं झूठ के पांव नहीं होते।
पर मुहावरा पलट जाता है तब
जब झूठ बोलने वाला
कोई मामूली बुढ़ऊ न होकर,
है जाने-माने, लंबे-तगड़े साठ-बरसिया
अठारह वर्ष की चुलबुली-सी बच्ची से
प्रेम लीला में डूबा ‘यूवा’।
तो सवाल उठता है कि झुठ में दम है?
जरूर होगा, नहीं तो क्यों नहीं आती है घिन
लाखों करोड़ों युवाओं के रोल मॉडल की
उस बात से जो है जन-जन के लबों पर?

अब इसमें बिचौलियों को घसीटें?
दलाल की ‘दरिंदगी भरी’ आंखें भी
कभी-कभी चौंधियां जाती हैं।
पथरा जाती है वे और
Writing on the wall उन्हें
बिल्कुल नजर नहीं आती।
अहंकारवश दल्लों की तो याददास्त भी धूमिल हो गईः
भूल गए हैं वे कि क्या हशर हुआ था उनका
जिन्होंने चलाया था गोयबल-सा रिकार्ड तोड़ झूठ का अभियानः
कि चमक रहा है इंडिया, दमक रहा है भारत।
दलालों को तो यह भी याद न रहा
कि लगाई थी उन्होंने सुप्रीमकोर्ट में जबरदस्त गुहार
कि टेलिफोन CD को जगजहिर न होने दें,
आज खुद बांटते फिरते हैं दूसरों की सीडी सरे आम।