"यमुना-वर्णन / भारतेंदु हरिश्चंद्र" के अवतरणों में अंतर
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तिन पै जेहि छिन चन्द जोति रक निसि आवति । | तिन पै जेहि छिन चन्द जोति रक निसि आवति । | ||
− | जल मै मिलिकै नभ अवनी लौं तानि तनावति॥ | + | जल मै मिलिकै नभ अवनी लौं तानि तनावति॥ |
− | होत मुकुरमय सबै तबै उज्जल इक ओभा । | + | होत मुकुरमय सबै तबै उज्जल इक ओभा । |
− | तन मन नैन जुदात देखि सुन्दर सो सोभा ॥ | + | तन मन नैन जुदात देखि सुन्दर सो सोभा ॥ |
− | सो को कबि जो छबि कहि , | + | सो को कबि जो छबि कहि , सकै ता जमुन नीर की । |
− | मिलि अवनि और अम्बर रहत , छबि इक - सी नभ तीर की ॥२॥ | + | मिलि अवनि और अम्बर रहत ,छबि इक - सी नभ तीर की ॥२॥ |
परत चन्र्द प्रतिबिम्ब कहूँ जल मधि चमकायो । | परत चन्र्द प्रतिबिम्ब कहूँ जल मधि चमकायो । | ||
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कबहुँ होत सत चन्द कबहुँ प्रगटत दुरि भाजत । | कबहुँ होत सत चन्द कबहुँ प्रगटत दुरि भाजत । | ||
+ | पवन गवन बस बिम्ब रूप जल मैं बहु साजत ।। | ||
+ | मनु ससि भरि अनुराग जामुन जल लोटत डोलै । | ||
+ | कै तरंग की डोर हिंडोरनि करत कलोलैं ।। | ||
+ | कै बालगुड़ी नभ में उड़ी, सोहत इत उत धावती । | ||
+ | कई अवगाहत डोलात कोऊ ब्रजरमनी जल आवती ।।४।। | ||
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20:57, 15 जनवरी 2011 का अवतरण
तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये।
झुके कूल सों जल-परसन हित मनहु सुहाये॥
किधौं मुकुर मैं लखत उझकि सब निज-निज सोभा।
कै प्रनवत जल जानि परम पावन फल लोभा॥
मनु आतप वारन तीर कौं, सिमिटि सबै छाये रहत।
कै हरि सेवा हित नै रहे, निरखि नैन मन सुख लहत॥१॥
तिन पै जेहि छिन चन्द जोति रक निसि आवति ।
जल मै मिलिकै नभ अवनी लौं तानि तनावति॥
होत मुकुरमय सबै तबै उज्जल इक ओभा ।
तन मन नैन जुदात देखि सुन्दर सो सोभा ॥
सो को कबि जो छबि कहि , सकै ता जमुन नीर की ।
मिलि अवनि और अम्बर रहत ,छबि इक - सी नभ तीर की ॥२॥
परत चन्र्द प्रतिबिम्ब कहूँ जल मधि चमकायो ।
लोल लहर लहि नचत कबहुँ सोइ मन भायो॥
मनु हरि दरसन हेत चन्र्द जल बसत सुहायो ।
कै तरंग कर मुकुर लिये सोभित छबि छायो ॥
कै रास रमन मैं हरि मुकुट आभा जल दिखरात है ।
कै जल उर हरि मूरति बसति ता प्रतिबिम्ब लखात है ॥३ ॥
कबहुँ होत सत चन्द कबहुँ प्रगटत दुरि भाजत ।
पवन गवन बस बिम्ब रूप जल मैं बहु साजत ।।
मनु ससि भरि अनुराग जामुन जल लोटत डोलै ।
कै तरंग की डोर हिंडोरनि करत कलोलैं ।।
कै बालगुड़ी नभ में उड़ी, सोहत इत उत धावती ।
कई अवगाहत डोलात कोऊ ब्रजरमनी जल आवती ।।४।।