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23:00, 19 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
पाताल-रेल में फ़ँसी एक तितली को देख कर...
यह दुनिया का सबसे रंगीन
सपना है
जो भटक गया है
सुबह सात-पन्द्रह की मेट्रो में
जबकि आधा शहर ऊँघ रहा है
अमूमन जहाँ भीड़-भाड़ होती है,
गिने-चुने लोग हैं
सुबह तड़के निकले हैं
शहर की नींद खुलने से पहले
कुछ ज़रूरी काम निबटाने
जैसे कि ठीक आठ बजे
किसी को खड़ा होना है
रेलवे बुकिंग काउन्टर की
क़तार में, अव्वल नम्बर पर
क्या साठ दिन बाद की सुरक्षित यात्रा में
शामिल किया जाएगा यह ज़रूरी सफ़र
कि जिसमें, दुनिया के सबसे रूमानी पल
दुनिया की सबसे रंगीन उड़ान में रहे साथ-साथ
सुबह सात पन्द्रह की मेट्रो में
सतरंगी पंखों पर सवार सपने
पाताल सुरंग के अँधेरे को चिढ़ाते
जुगनुओं से चमकते हैं,
बुझते हैं, फिर चमकते हैं
असहाय एक फ़रियादी
घण्टा बजाता हो जैसे
किसी बादशाह की अदालत में
बेबस एक तितली, वैसे ही,
टकराती है हर एक खिड़की से
और लौट आती है
बेतरतीब सवारियों के बीच
विज्ञापन जितना स्थान घेरती हुई
सुबह सात पन्द्रह की मेट्रो में
भटक गई एक तितली
कि भटक गया
दुनिया का सबसे रंगीन सपना,
यह भोर तक नींद में था
लोगों के साथ-साथ, और
अभी-अभी जा छिपा है
तितली के पंखों में
हो सकता है कि तितली
एक स्कूली बच्चे के बस्ते में छिप जाए
और पहुँच जाए, शहर के
एक साफ़-सुथरे स्कूली मैदान में,
ऐसा हुआ तो बच जाएगी तितली
बचा रहेगा दुनिया का सबसे रंगीन सपना
होने को तो, हो सकता है यह भी
कि तितली एक लड़की के ख़ुशबूदार बालों में,
छिप जाये, और बच निकले इस पाताल से
बेरोज़गार से दिखने वाले
एक लड़के के झोले में भी
जा बैठेगी तितली,
तो बच ही जायेगी
दोस्तों, एक तितली के भविष्य पर
टिकी है, दुनिया के सबसे रंगीन सपने की ताबीर
सुबह सात पन्द्रह की मेट्रो के दरवाज़े
सत्रह बार खुलेंगे और बन्द होंगे
इस बीच बदलेंगे यात्री
ऐसे में, आश्वस्त होने के लिए
हमारे पास एक ही तथ्य है;
तथ्य यह कि
तितलियों का इतिहास,
मानव इतिहास से भी ज़्यादा पुराना है
भागीरथी के तट पर, कल्लोलिनी कोलकाता में
सत्रह स्टेशनों की दूरी पर,
दुनिया के सबसे रंगीन
सपनों की भटकन ...
टालीगंज से दमदम तक की है,
सुरंगें आख़िरकार खुलती हैं
धरती के ही किसी छोर पर ।