"दो प्राण मिले / गोपाल सिंह नेपाली" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोपाल सिंह नेपाली }} {{KKCatKavita}} <poem> दो मेघ मिले बोले-ड…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) छो ("दो प्राण मिले / गोपाल सिंह नेपाली" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:11, 20 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
दो मेघ मिले बोले-डोले, बरसाकर दो-दो बूँद चले ।
भौंरों को देख उड़े भौरें, कलियों को देख हँसी कलियाँ,
कुंजों को देख निकुंज हिले, गलियों को देख बसी गलियाँ,
गुदगुदा मधुप को, फूलों को, किरणों ने कहा जवानी लो,
झोंकों से बिछुड़े झोंकों को, झरनों ने कहा, रवानी लो,
दो फूल मिले, खेले-झेले, वन की डाली पर झूल चले,
दो मेघ मिले बोले-डोले, बरसाकर दो-दो बूँद चले ।
इस जीवन के चौराहे पर, दो हृदय मिले भोले-भाले,
ऊँची नज़रों चुपचाप रहे, नीची नज़रों दोनों बोले,
दुनिया ने मुँह बिचका-बिचका, कोसा आज़ाद जवानी को,
दुनिया ने नयनों को देखा, देखा न नयन के पानी को,
दो प्राण मिले झूमे-घूमे, दुनिया की दुनिया भूल चले,
दो मेघ मिले बोले-डोले, बरसाकर दो-दो बूँद चले ।
तरुवर की ऊँची डाली पर, दो पंछी बैठे अनजाने,
दोनों का हृदय उछाल चले, जीवन के दर्द भरे गाने,
मधुरस तो भौरें पिए चले, मधु-गंध लिए चल दिया पवन,
पतझड़ आई ले गई उड़ा, वन-वन के सूखे पत्र-सुमन
दो पंछी मिले चमन में, पर चोंचों में लेकर शूल चले,
दो मेघ मिले बोले-डोले, बरसाकर दो-दो बूँद चले ।
नदियों में नदियाँ घुली-मिलीं, फिर दूर सिंधु की ओर चलीं,
धारों में लेकर ज्वार चलीं, ज्वारों में लेकर भौंर चलीं,
अचरज से देख जवानी यह, दुनिया तीरों पर खड़ी रही,
चलने वाले चल दिए और, दुनिया बेचारी पड़ी रही,
दो ज्वार मिले मझधारों में, हिलमिल सागर के कूल चले,
दो मेघ मिले बोले-डोले, बरसाकर दो-दो बूँद चले ।
हम अमर जवानी लिए चले, दुनिया ने माँगा केवल तन,
हम दिल की दौलत लुटा चले, दुनिया ने माँगा केवल धन,
तन की रक्षा को गढ़े नियम, बन गई नियम दुनिया ज्ञानी,
धन की रक्षा में बेचारी, बह गई स्वयं बनकर पानी,
धूलों में खेले हम जवान, फिर उड़ा-उड़ा कर धूल चले,
दो मेघ मिले बोले-डोले, बरसाकर दो-दो बूँद चले ।